Saturday 14 February 2015

समय की रफ़्तार

                                       समय की रफ़्तार

हस्तलिखित पत्र का स्थान 
'मेल ' ने छिना  है। 
नवीन तकनीकों  ने ,
आत्मीयता को औपचारिकता में 
बदल दिया है।
धन तेरस पर बर्तन बिकने के स्थान पर ,
वाहन  ने अधिक अपना अस्तित्व 
बाज़ार में बनाया है। 
प्रत्यक्ष मुबारकवाद लोगों ने  देना छोड़ा ,
कम्प्यूटरीकरण ने फेसबुक से लोगों  को जोड़ा। 
आज के लोगों के सजे हुए तन ने ,
तंग होते हुए मन से ,
रूबरू करवाया है।
आज नेट का जमाना है ,
नेट पर चैट ने अपना ,
जाल फैलाया है।
वीडियो गेम ने ,
गिल्लीदण्डा का आस्तित्व छीना है। 
समय के रफ़्तार ने ,
लोगों के जीने का तजुर्बा ,
और देखने के  नजरिया से रूबरू करवाया है। 

हस्तलिखित पत्र का स्थान ,
'मेल ' ने छिना है।

Saturday 15 November 2014

शानी  एक ऐसे कथा लेखक है जो अपनी समसामयिक विषय की पृष्ठभूमि को अपने लेखन से प्रभावित करते  रहे  हैं।  उन्होंने समकालीन शैलीगत प्रभाव को पूर्णरूपेण प्रयोग करते हुए अपने उपन्यास में नयी शैलीगत मान्यताओं को प्रक्षेपित किया है।  जो अपने आप में शैली की दृष्टि से विशिष्ट हैं।  शानी अपने अनुभूतियों और विचारों को अभिव्यक्ति देने के लिए अच्छी शैली का प्रयोग किया है।  इनके उपन्यास साहित्य के पात्र जितना कुछ बोलते है उससे कहीं  अधिक अपने भीतर की पीड़ा और वेदना को अभिव्यक्त  भी करते हैं। शानी के उपन्यास साहित्य के शैली तत्व इनकी लेखनी का स्पर्श पाकर पाठकों को अभिभूत करते हैं। इनके उपन्यास पाठकों के ह्दय तथा बुद्धि को समान रूप से आविष्ट  करने की क्षमता रखते हैं।  इनकी शैली का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक एवं विस्तृत है। विषय विस्तार की जहाँ आवश्यकता होती है वहाँ लेखन अपनी बात स्पष्ट रूप से कह देते है।  इसी प्रकार नारी पात्र सल्लो आपा जो कि किसी नवयुवक से प्रेम करती है किन्तु वह अपने परिवार के डर के कारण कुछ कह नहीं पाती है और जब उसके घर वालों को पता चलता है कि वह अविवाहित ही गर्भवती हो गई है तो उसे जहर  देकर मार दिता  जाता है।
शानी ने  परिवेश के अनुकूल ही भाषा शैली को अपनाया है। जैसा परिवेश एवं माहौल  होता है उसी प्रकार अभिव्यक्ति की शैली निर्मित हो जाती है। यह रचनाकार की सम्भावनाशीलता को दिखती है। रचनाकार पर हिन्दुस्तानी और उर्दू दोनों भाषाओं का प्रभाव दिखायी डेट है। इसलिए ठेठ हिन्दुस्तानी शैली का प्रयोग भी उनके उपन्यास में दिखायी देता है। कथात्मक शैली का भी प्रयोग शानी के उपन्यास में देखने को मिलती है। कथात्मक शैली से तात्पर्य  उपन्यास के बीच में कही जाने वाली लघु कथाओं से युक्त शैली से है जो कि उपन्यास में कही जाने वाली बातों की वास्तविकता सिद्ध करती है। लघु कथाएँ उपन्यास को यथार्थता से जोड़ती है। साथ ही साथ वर्तमान समय में जिस बातों को नकार दिया जाता है , तब लोक प्रचलित लघुकथाएँ उनकी सार्थकता सिद्ध करती है।
कथात्मक शैली का प्रयोग उपन्यास में ज्यादातर के माध्यम से किया गया है। बीच -बीच में नैरेटर का कार्य करता है-
''लेकिन उसके बाद अचानक सुनारिन की आवाज बन्द हो गई थी जैसे किसी ने कसकर मुँह ही मूँद लिया हो। फिर एकाएक दबा हुआ स्वर बड़ी जोर से चीरता हुआ मुहल्ले -भर में गूँज गया था ,'' माँ गोओ  ओ  ओ ! माँ गो   ओ ओ !''
शानी कृत उपन्यास ''काला जल '' में संवादात्मक शैली भी देखने को मिलती है। इसे वार्तालाप या कथोपकथन कहा जाता है। नाटकों में जितना संवादों का महत्वपूर्ण स्थान होता है। उतना ही महत्व उपन्यास में भी है कथा को आगे बढ़ाने के लिए तथा पात्रों के गतिविधियों को स्पष्ट करने  में संवाद महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
निष्कर्षतः कह सकते है कि शानी के उपन्यास साहित्य की शैली में विविधता देखने को मिलती है जो कि इनके साहित्य में कलात्मक एवं रोचकता की वृद्धि करता है। लेखक के शैली का सौंदर्य भाषा एवं भाषागत या भाषा इकाइयों का सुव्यवस्थित से विषयनुकूल चयन है।  इनके उपन्यास में नवीन शैलीगत

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शानी ने अपने उपन्यास ''काला जल '' के माध्यम से सामाजिक पृष्ठभूमि  पर आधारित कई सामान्य ज्वलंत समस्याओं को उजागर किया है। जैसे - नारी समस्या , शिक्षा समस्या ,रूढ़िवादिता ,विघटित होते सामाजिक संबंध आदि को अपने कृतित्व में यथार्थ रूप से अभिव्यक्ति की है।  चाहे ये सभी मध्यवर्ग एवं उच्चवर्ग के दैनिक जीवन से संबंधित समस्याएँ हों। उन्होंने इन सभी समस्याओं के मूल कारण व्यक्ति और समाज के मध्य असामंजस्य की स्थिति को पहचाना था। शानी ने यह जान लिया था कि जब तक व्यक्ति और समाज के अपने -अपने स्वार्थ आपस में टकराते रहेंगे तब तक ये समस्याएँ बनी रहेंगी। इसलिए उन्होंने अपने उपन्यासों के माध्यम से जहाँ एक ओर व्यक्ति के आचरण और अंतः संघर्ष को बड़े ही सूक्ष्म रूप से प्रस्तुत किया है। वहीं दूसरी ओर समाज की विभिन्न समस्याओं को सार्थकता प्रदान कर व्यक्ति एवं समाज को परस्पर सापेक्ष मानकर एक नवीन मूल्य की सृष्टि करने की कोशिश की है। इन समस्याओं के अंतर्गत उन्होंने युगीन तात्कालिक समस्याओं , जैसे संबंधों में विघटन , विवाह और प्रेम आदि पर ही दृष्टिपात नहीं किया है बल्कि अधिक संवेदन एवं विचारशीलता के साथ नारी -दास्ता की सदियों पुरानी समस्या को तथा समाज को भी सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया के सन्दर्भ में भी प्रश्न उठाया है। उन्होंने विभिन्न समस्याओं के सन्दर्भ में अपने कृति के माध्यम से प्रश्न उठाया है जो उनके युग से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित होने के बावजूद आज के युग से भी उतने ही संबन्धित है।  उदाहरण के लिए भारतीय नारी की दुर्दशा का कारण उसकी अशिक्षा और रूढ संस्कार तो है ही ,साथ ही यदि नारी आर्थिक रूप से स्वतन्त्र हो जाए तो वह समाज में पुरुष के समकक्ष स्थान प्राप्त कर सकती है। नारी के साथ होने वाले पाशविक अत्याचार ,उच्च परिवारों में होने वाले गुप्त व्यभिचारों ,अनैतिक ,प्रेम सम्बन्धों आदि की सच्चाईयों को शानी ने उधेड़कर रख दिया है। शानी साहित्य के माध्यम से राजनीति को भी चित्रित करते है। ये उन साहित्यकारों में से नहीं हैं जो राजनीति की साहित्य के अन्तर्गत होने वाली चर्चा के विरोधी है।  इन्होंने आर्थिक ,राजनीतिक परिस्थितियों को जीवन का एक आवश्यक तत्व माना है। आधुनिक जीवन परिवारिक संबंधों के विघटन का कारण बना है। आपने आदमी के अकेलेपन को समय के साथ एक पीढ़ी से दूसरी की बदलती   हुई  मानसिकता को सामाजिक परिवर्तन के साथ आदमी के बदलते संबधों को उजागर किया है।  व्यक्ति  का अकेलापन आधुनिक जीवन के बीच उभरता हुआ विवशता का अकेलापन है। अतः इस युग का व्यक्ति परिवार , समाज , नयी शिक्षा , नये  दबाव और नयी परिस्थितियों से जूझ रहा है। मानवीय स्थिति में बदलाव , जीवन में भी बदलाव लाता है जिससे सोचने -विचारने ,रहन - सहन आदि के तरीके बदलने लगते है। शानी का उपन्यास साहित्य में सामाजिक बदलाव से उत्पन्न वैचारिक भावनात्मक संघर्षों एवं मानवीय दुःख -दर्द को सशक्त ढंग से उकेरा गया है। पुरानी पीढ़ी के पूर्वाग्रह एवं नयी पीढ़ी के मुक्त विचारों के बीच टकराहट को शानी ने स्पष्ट रूप से उभारा है। अतः स्पष्ट होता है कि रिश्तों की टूटते , पति -पत्नी के संबंधों मर आये बदलाओं आदि शानी को गहरे तक प्रभावित कर गया है। शानी का उपन्यास साहित्य समाज के विविध पहलुओं को उजागर करता है और पाठकों  को एक नई दृष्टि देता है।  

Tuesday 19 November 2013

आज का इंसाफ
जीवन की क़ीमत  कुछ वर्ष बतलाता ,
काली पट्टी से बंध जाता इंसाफ ,
 न्याय रक्षक,  जीवन लेने वाले को बनाता। 
दंड न देता न्यायमूर्ति,
 मानवता का पाठ  पढ़ाता  । 
संविधान के किताबों में ही ,
समावेश रहता अनुच्छेद ३०२ ।
नन्हें -नन्हेंकलियों को मोड़ता,
 जीवन का आदर्श बतलाता  । 
चक्षुयों  पर काली पट्टी  बांधकर,
असत्य को सत्य ठहरता  ,
मुद्रा बना पूजा का मंदिर,
 भ्रष्टाचार का दीपक जलाता। 
 अपनी नारी को देवी कहता,
 पर नारी का चीरहरण करवाता । 
स्वर्ण स्फीति  के बल पर काले को सफेद बतलाता । 
जीवन की कीमत मात्र कुछ वर्ष बतलाता,
साधु बना भक्षक,
 कहलवाला  देवों  का देव। 
रक्त पीकर क्रन्तिकारी बन जाता ,
सविंधान के किताबों में लिखा रह जाता अनुच्छेद ,
 कूँहकती  रहती नित्य कालियाँ  अनेक  ।
 जीवन की क़ीमत  कुछ वर्ष बतलाता ,
काली पट्टी से बंध जाता इंसाफ।। 

Friday 15 November 2013

अभिप्रेरणा



"मन है मंदिर किसी ने जाना नहीं ,
नारी को किसी ने पहचाना नहीं ।। 
वीर भीष्म बने पुरुष हमेशा ,
केवल करते नारी अत्याचार हमेशा ।।
 इन्होंने  नारी शक्ति को जाना नहीं ,
हिमालय की क्षमता को पहचाना नहीं ||
करती सब पर परोपकार,
 सहती सबका अत्याचार  नारी तुम खुद को पहचानो 
अपना अस्तित्व तुम स्वयं बनालो
 मन है मंदिर किसी ने जाना नहीं ,
 नारी शक्ति को किसी ने पहचाना नहीं ॥
   तुम्हारे कमल नेत्रों के पानी को देखने वाला नहीं ,
 ये भीर पुरुष तुमको पहचानने वाले   नहीं,
  हो चुका भारत स्वत्रंत फिर भी अंग्रेज  कहर ढाहेग़े ,
खुद को महान बतायेगे ॥ 
 बहुत हो गया यह सब अब स्वंम  को पहचानो तुम  ,
 और कर दो नारी शक्ति की जयजयकार ॥ 
  मन है मंदिर  किसी ने जाना नहीं,
  नारी को किसी ने पहचाना नहीं॥  ''