शानी ने अपने उपन्यास ''काला जल '' के माध्यम से सामाजिक पृष्ठभूमि पर आधारित कई सामान्य ज्वलंत समस्याओं को उजागर किया है। जैसे - नारी समस्या , शिक्षा समस्या ,रूढ़िवादिता ,विघटित होते सामाजिक संबंध आदि को अपने कृतित्व में यथार्थ रूप से अभिव्यक्ति की है। चाहे ये सभी मध्यवर्ग एवं उच्चवर्ग के दैनिक जीवन से संबंधित समस्याएँ हों। उन्होंने इन सभी समस्याओं के मूल कारण व्यक्ति और समाज के मध्य असामंजस्य की स्थिति को पहचाना था। शानी ने यह जान लिया था कि जब तक व्यक्ति और समाज के अपने -अपने स्वार्थ आपस में टकराते रहेंगे तब तक ये समस्याएँ बनी रहेंगी। इसलिए उन्होंने अपने उपन्यासों के माध्यम से जहाँ एक ओर व्यक्ति के आचरण और अंतः संघर्ष को बड़े ही सूक्ष्म रूप से प्रस्तुत किया है। वहीं दूसरी ओर समाज की विभिन्न समस्याओं को सार्थकता प्रदान कर व्यक्ति एवं समाज को परस्पर सापेक्ष मानकर एक नवीन मूल्य की सृष्टि करने की कोशिश की है। इन समस्याओं के अंतर्गत उन्होंने युगीन तात्कालिक समस्याओं , जैसे संबंधों में विघटन , विवाह और प्रेम आदि पर ही दृष्टिपात नहीं किया है बल्कि अधिक संवेदन एवं विचारशीलता के साथ नारी -दास्ता की सदियों पुरानी समस्या को तथा समाज को भी सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया के सन्दर्भ में भी प्रश्न उठाया है। उन्होंने विभिन्न समस्याओं के सन्दर्भ में अपने कृति के माध्यम से प्रश्न उठाया है जो उनके युग से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित होने के बावजूद आज के युग से भी उतने ही संबन्धित है। उदाहरण के लिए भारतीय नारी की दुर्दशा का कारण उसकी अशिक्षा और रूढ संस्कार तो है ही ,साथ ही यदि नारी आर्थिक रूप से स्वतन्त्र हो जाए तो वह समाज में पुरुष के समकक्ष स्थान प्राप्त कर सकती है। नारी के साथ होने वाले पाशविक अत्याचार ,उच्च परिवारों में होने वाले गुप्त व्यभिचारों ,अनैतिक ,प्रेम सम्बन्धों आदि की सच्चाईयों को शानी ने उधेड़कर रख दिया है। शानी साहित्य के माध्यम से राजनीति को भी चित्रित करते है। ये उन साहित्यकारों में से नहीं हैं जो राजनीति की साहित्य के अन्तर्गत होने वाली चर्चा के विरोधी है। इन्होंने आर्थिक ,राजनीतिक परिस्थितियों को जीवन का एक आवश्यक तत्व माना है। आधुनिक जीवन परिवारिक संबंधों के विघटन का कारण बना है। आपने आदमी के अकेलेपन को समय के साथ एक पीढ़ी से दूसरी की बदलती हुई मानसिकता को सामाजिक परिवर्तन के साथ आदमी के बदलते संबधों को उजागर किया है। व्यक्ति का अकेलापन आधुनिक जीवन के बीच उभरता हुआ विवशता का अकेलापन है। अतः इस युग का व्यक्ति परिवार , समाज , नयी शिक्षा , नये दबाव और नयी परिस्थितियों से जूझ रहा है। मानवीय स्थिति में बदलाव , जीवन में भी बदलाव लाता है जिससे सोचने -विचारने ,रहन - सहन आदि के तरीके बदलने लगते है। शानी का उपन्यास साहित्य में सामाजिक बदलाव से उत्पन्न वैचारिक भावनात्मक संघर्षों एवं मानवीय दुःख -दर्द को सशक्त ढंग से उकेरा गया है। पुरानी पीढ़ी के पूर्वाग्रह एवं नयी पीढ़ी के मुक्त विचारों के बीच टकराहट को शानी ने स्पष्ट रूप से उभारा है। अतः स्पष्ट होता है कि रिश्तों की टूटते , पति -पत्नी के संबंधों मर आये बदलाओं आदि शानी को गहरे तक प्रभावित कर गया है। शानी का उपन्यास साहित्य समाज के विविध पहलुओं को उजागर करता है और पाठकों को एक नई दृष्टि देता है।
No comments:
Post a Comment