Friday 15 November 2013

अभिप्रेरणा



"मन है मंदिर किसी ने जाना नहीं ,
नारी को किसी ने पहचाना नहीं ।। 
वीर भीष्म बने पुरुष हमेशा ,
केवल करते नारी अत्याचार हमेशा ।।
 इन्होंने  नारी शक्ति को जाना नहीं ,
हिमालय की क्षमता को पहचाना नहीं ||
करती सब पर परोपकार,
 सहती सबका अत्याचार  नारी तुम खुद को पहचानो 
अपना अस्तित्व तुम स्वयं बनालो
 मन है मंदिर किसी ने जाना नहीं ,
 नारी शक्ति को किसी ने पहचाना नहीं ॥
   तुम्हारे कमल नेत्रों के पानी को देखने वाला नहीं ,
 ये भीर पुरुष तुमको पहचानने वाले   नहीं,
  हो चुका भारत स्वत्रंत फिर भी अंग्रेज  कहर ढाहेग़े ,
खुद को महान बतायेगे ॥ 
 बहुत हो गया यह सब अब स्वंम  को पहचानो तुम  ,
 और कर दो नारी शक्ति की जयजयकार ॥ 
  मन है मंदिर  किसी ने जाना नहीं,
  नारी को किसी ने पहचाना नहीं॥  ''

1 comment:

  1. नारी शोषण पर बेहद शानदार कविता है ये. उपमा जी इसी तरह अच्छे मुद्दों पर रचनाएँ करती रहिये. All the best.

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