Tuesday 19 November 2013

आज का इंसाफ
जीवन की क़ीमत  कुछ वर्ष बतलाता ,
काली पट्टी से बंध जाता इंसाफ ,
 न्याय रक्षक,  जीवन लेने वाले को बनाता। 
दंड न देता न्यायमूर्ति,
 मानवता का पाठ  पढ़ाता  । 
संविधान के किताबों में ही ,
समावेश रहता अनुच्छेद ३०२ ।
नन्हें -नन्हेंकलियों को मोड़ता,
 जीवन का आदर्श बतलाता  । 
चक्षुयों  पर काली पट्टी  बांधकर,
असत्य को सत्य ठहरता  ,
मुद्रा बना पूजा का मंदिर,
 भ्रष्टाचार का दीपक जलाता। 
 अपनी नारी को देवी कहता,
 पर नारी का चीरहरण करवाता । 
स्वर्ण स्फीति  के बल पर काले को सफेद बतलाता । 
जीवन की कीमत मात्र कुछ वर्ष बतलाता,
साधु बना भक्षक,
 कहलवाला  देवों  का देव। 
रक्त पीकर क्रन्तिकारी बन जाता ,
सविंधान के किताबों में लिखा रह जाता अनुच्छेद ,
 कूँहकती  रहती नित्य कालियाँ  अनेक  ।
 जीवन की क़ीमत  कुछ वर्ष बतलाता ,
काली पट्टी से बंध जाता इंसाफ।। 

Friday 15 November 2013

अभिप्रेरणा



"मन है मंदिर किसी ने जाना नहीं ,
नारी को किसी ने पहचाना नहीं ।। 
वीर भीष्म बने पुरुष हमेशा ,
केवल करते नारी अत्याचार हमेशा ।।
 इन्होंने  नारी शक्ति को जाना नहीं ,
हिमालय की क्षमता को पहचाना नहीं ||
करती सब पर परोपकार,
 सहती सबका अत्याचार  नारी तुम खुद को पहचानो 
अपना अस्तित्व तुम स्वयं बनालो
 मन है मंदिर किसी ने जाना नहीं ,
 नारी शक्ति को किसी ने पहचाना नहीं ॥
   तुम्हारे कमल नेत्रों के पानी को देखने वाला नहीं ,
 ये भीर पुरुष तुमको पहचानने वाले   नहीं,
  हो चुका भारत स्वत्रंत फिर भी अंग्रेज  कहर ढाहेग़े ,
खुद को महान बतायेगे ॥ 
 बहुत हो गया यह सब अब स्वंम  को पहचानो तुम  ,
 और कर दो नारी शक्ति की जयजयकार ॥ 
  मन है मंदिर  किसी ने जाना नहीं,
  नारी को किसी ने पहचाना नहीं॥  ''