Friday 2 March 2012

अकेली

भीड़ में भी हूँ   अकेली 
  निशदिन रहती हूँ तन्हाइयो  में
  हर कोई पूछता  है मुझसे 
  मै हूँ कौन?
 क्या बताऊ ये खुदा ? 
निकला मुझे इन्ही लोगो ने 
 भीड़ में भी अकेली हूँ
 निशदिन रहती हूँ तन्हाइयो  में
 तू ने मुझे बनाया खुदा
 फिर क्यों पहचानने से इंकार करता ?
  सोचती   हूँ कुछ कर जाऊ
 दुनिया से मै लड़ जाऊ
 फिर सोचती हूँ
 ये वैभव,नाम ,पहचान
 किस कम का  
 एक दिन फिर तुझ पर 
न्यौछावर सब कुछ कर जाऊ     
 भीड़ में भी हूँ अकेली  
निशदिन रहती हूँ तन्हाइयो  में




     

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