धरती कहती कष्टों को सहना सीखो तुम
धैर्य आत्म सयंम को धारण करना सीखो तुम
वृक्ष देता नित सन्देश हमें
दूसरो के लिए जीना सीखो तुम ]
झुककर चलना सीखो तुम
सागर हमे कहते
वर्ण भेद को भूल कर
सामन्जस्य स्थापित करना सीखो तुम
लोगो की गलतिओं को क्षमा करना सीखो तुम
मानवता कहती है
दीन दुखियो की सहायता करना सीखो तुम
सूरज कहता है ज्ञान फैलाओ तुम
अन्धविश्वास को मिटाओ तुम
चन्द्रमा की शीतल चांदनी हमे सिखाती
क्रोध को वश में करो तुम
हवा सिखाती दूसरो को जीवन दो तुम
दूसरो के दुखो को महसूस करो तुम
प्रकृति कहती है नित समय पर कर्म करो तुम
yes upama tumne sahi kaha tumhari kavita dil ko chu gayi
ReplyDeleteupma tum ne bahut achi upma ki hai , keep it up!
ReplyDeleteNice Poem..Keep going on.
ReplyDeletethx
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